हिंदी साहित्य की आत्मा छंदों में बसती है। हर छंद एक लय है, एक ताल है, जो शब्दों को जीवंत बना देती है। इस लेख में हम हिंदी के प्रमुख छंद—दोहा, उल्लाला, चौपाई, रोला, गीतिका और हरिगीतिका—की संरचना, नियम, और इतिहास को सरल शब्दों में समझेंगे।
1. दोहा- 13-11 मात्राएँ, अर्द्धसममात्रिक छंद
– सम चरणों के अंत में जगण व तगण का होना जरूरी।
– विषम चरणों के प्रारंभ में जगण नहीं आता।
– सम चरणों के अंत में लघु आता है।
– यति पादांत में होती है।
– तुक प्रायः समपादों में मिलती है।
– हिंदी में दोहा अपभ्रंश से आया है।
– दोहा अपभ्रंश का लाडला छंद है।
– दोहा छंद का सर्वप्रथम प्रयोग ’सरहपा’ ने किया था।
– दोहा शब्द की व्युत्पत्ति ’द्विपद’ से हुई है।
“जैसा भोजन कीजिए, तैसा ही मन होय।
कबीर दास
जैसा पानी पीजिए, तैसी वाणी होय॥”
🟢 भावार्थ: भोजन और पानी का प्रभाव हमारे मन और वाणी पर पड़ता है।
2. उल्लाला- 15-13 मात्राएँ, अर्द्धसममात्रिक, छंद
– दूसरे व चौथे चरण के अंत में गुरु होना आवश्यक है।
– तुक समचरण में होती है।
– ’उल्लाला’ का नामकरण ’भानुदत्त’ ने किया था।
– उल्लाला को ’चंद्रमणि’ भी कहा गया है।
– सूदन ने ’सुजानचरित’ में उल्लाला छंद का प्रयोग किया है।
“सुनि निज नाम उर धारी,
सुजानचरित (सूदन)
शिवजी पद अति प्यारा।”
🟢 विशेष: उल्लाला छंद में दूसरे व चौथे चरण के अंत में गुरु वर्ण आता है।
3. चौपाई- 16-16 मात्राएँ, सममात्रिक छंद
– प्रत्येक चरण के अंत में जगण व तगण न हो।
– प्रत्येक चरण के अंत में लघु-लघु, गुरु-गुरु हो।
– हिंदी का अपना व सर्वप्रिय छंद ।
– तुक प्रथम की द्वितीय व तृतीय की चतुर्थ से मिलती है।
– चौपाई-दोहे का सबसे पुराना प्रयोग ’सरहपा’ ने किया- हजारी प्रसाद द्विवेदी
– चौपाई छंद का प्रयोग सूदन ने ‘जयकारी’ नाम से किया है।
– हिंदी में चौपाई छंद का सर्वप्रथम प्रयोग चंदबरदाई ने ’पृथ्वीराज रासों में किया है।
“राम नाम मन में बस जाओ,
हर संकट में रक्षा पाओ॥”
🟢 यह छंद सममात्रिक है और तुलसीदास के रामचरितमानस में चौपाई का बहुत प्रयोग हुआ है।
4. रोला- 24-24 मात्राएँ, सममात्रिक छंद
– 11-13 पर यति
– प्रत्येक चरण के अंत में दो गुरु या दो लघु वर्ण रखे जाते हैं।
– रोला अपभ्रंश का छंद है। हिंदी में यह अपभ्रंश से आया है।
– नंददास की ‘रास पंचाध्यापी’ रोला छंद का सुंदर उदाहरण है।
– हजारी प्रसाद द्विवेदी- ‘‘रोला, उल्लाला, वीर, छप्पय और कुण्डलिया अपभ्रंश के अपने छंद है।’’
“कृष्ण कन्हैया नाम लेत, मिट जाए भव की पीर।
नंददास कहे हरि भजन, बन जाए नव जीवन धीर॥”
🟢 रोला में 11-13 पर यति होती है और चरणांत में दो गुरु/लघु वर्ण होते हैं।
5. गीतिका- 26-26 मात्राएँ, सममात्रिक छंद
– 14-12 पर यति
– अंत में लघु-गुरु होता है।
– हिंदी में गीतिका खेद का प्रयोग चंदबरदाई (पृथ्वीराजरासो), केशवदास (रामचंद्रिका), भूषण (शिवराज भूषण) ने किया है।
“जय जय रघुवीर समर्थ, प्रभु दीनदयालु सदा।
संकट मोचन मंगल मूर्ति, करिये तुम्हें वंदना॥”
🟢 गीतिका में 14-12 पर यति होती है, अंत में लघु-गुरु रहता है।
6. हरिगीतिका – 28 मात्राएँ, सममात्रिक छंद
– 16-12 पर यति
– अंत में लघु गुरु अवश्य आता है।
– 5 वीं, 12वीं, 19वीं व 26 वीं मात्रा लघु आना जरूरी है।
– प्राकृत पैंगलम में ’हरिगीतिका’ को ’गीता’ कहा गया है।
“हरि नाम जपहु रे सखा, जीवन सुधा सम जान।
दुःख सागर से पार हो, हरि भक्ति है धन महान॥”
🟢 हरिगीतिका में 16-12 पर यति होती है, और 5वीं, 12वीं, 19वीं व 26वीं मात्राएँ लघु होनी चाहिए।
छंदों की गहराई को जानना केवल साहित्यिक नहीं, आत्मिक अनुभव है। चाहे दोहा की सरलता हो या गीतिका की लयबद्धता, हर छंद एक नई सोच और भावनात्मक आयाम खोलता है।
📚 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs):
❓1. हिंदी में कितने प्रकार के छंद होते हैं?
उत्तर:
हिंदी में मुख्यतः तीन प्रकार के छंद पाए जाते हैं —
- सममात्रिक छंद (जैसे चौपाई, गीतिका, हरिगीतिका)
- अर्धसममात्रिक छंद (जैसे दोहा, उल्लाला)
- वर्णिक छंद (जो वर्णों की संख्या पर आधारित होते हैं)
इनमें से सममात्रिक और अर्धसममात्रिक छंद हिंदी कविता में अधिक प्रचलित हैं।
❓2. दोहा और चौपाई में क्या अंतर है?
उत्तर:
- दोहा में 13-11 मात्राएँ होती हैं और यह अर्धसममात्रिक छंद है।
- चौपाई में 16-16 मात्राएँ होती हैं और यह सममात्रिक छंद है।
दोहा में तुकांत विषम और सम चरणों में अलग-अलग होती है, जबकि चौपाई में सम चरणों में तुकांत मिलती है।
❓3. सबसे प्राचीन छंद कौन-सा है?
उत्तर:
दोहा को हिंदी का सबसे प्राचीन छंद माना जाता है। इसका प्रयोग सबसे पहले सरहपा नामक कवि ने किया था। यह छंद अपभ्रंश भाषा से हिंदी में आया है।