Posted inTest Series डॉ. नगेन्द्र Test-02 (NET,SET,TGT,PGT,Hindi) Special Posted by Bhawna June 26, 2024No Comments डॉ. नगेन्द्र Test-02 (NET,SET,TGT,PGT,Hindi) Special 1 / 20 फ्रैंच विद्वान गार्सा द तासी द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास 'इस्त्वार द ला लितरेत्युर ऐन्दुई ऐन्दुस्तानी' किस भाषा में लिखा गया हैं ? अंग्रेजी फ्रैंच हिन्दी उर्दू विशेष- हिन्दी और उर्दू के अनेक कवियों का वर्णन वर्णक्रमानुसार दिया गया है।- इसका प्रथम भाग - 1839 ई. में- इसका द्वितीय भाग- 1847 ई. में प्रकाशित हुआ ।- इसका दूसरा संस्करण 1871 ई. में प्रकाशित हुआ।- दूसरे संस्करण को तीन खण्डों में विभक्त करते हुए पर्याप्त संशोधन किया गया है।- कालक्रम के स्थान पर अंग्रेजी वर्णक्रमानुसार कवियों का वर्णन किया गया है।- हिन्दी व अन्य भाषाओं के कवियों को परस्पर घुलामिला दिया गया है ।- कुल 738 कवि है जिसमें हिन्दी के 72 कवि है ।- हिन्दी के 72 कवियों वाले अंश का अनुवाद 1952 ई. में प्रयाग- विश्वविद्यालय के हिन्दी प्रोफेसर लक्ष्मी सागर वार्ष्णेय ने 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' नाम से किया- शुक्ल ने 'बड़ा कवि वृत संग्रह' कहा है।- तासी की परम्परा को आगे बढ़ाने का श्रेय 'शिव सिंह सेंगर' को है। 2 / 20 जॉर्ज ग्रियर्सन द्वारा 1888 ई. में अंग्रेजी भाषा में रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास 'द मॉडर्न वर्नेक्युलर लिटरेचर ऑफ हिन्दुस्तान' का हिन्दी भाषा में अनुवाद ' हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास' नाम से किसने किया ? लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय भगीरथ मिश्र डॉ. नगेन्द्र किशोरी लाल गुप्त विशेष :-- एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल की पत्रिका का विशेषांक के रूप मे सन् 1888 ई. में प्रकाशित- नाम से इतिहास न होते हुए भी सच्चे अर्थ में हिन्दी साहित्य का पहला इतिहास कहा जा सकता है।- कवियों व लेखकों का कालक्रमानुसार वर्णन प्रवृत्तियों का भी चित्रण- ग्रियर्सन भूमिका में लिखते हैं- 'मैं आधुनिक भाषा साहित्य का विवरण प्रस्तुत करने जा रहा हूँ । अतः मैं संस्कृत में ग्रंथ रचना करने वाले लेखकों का विवरण नहीं दे रहा हूँ। प्राकृत में लिखी - - पुस्तकों को भी विचार के बाहर रख रहा हूँ। भले ही प्राकृत कभी बोल-चाल की भाषा रही हो, पर आधुनिक भाषा के अन्तर्गत नहीं आती।- मैं न तो अरबी फारसी के भारतीय लेखकों का उल्लेख कर रहा हूँ और न ही विदेश से लायी गयी साहित्यिक उर्दू के लेखकों का ही - मैंने इन अंतिम को, उर्दू वालों को, अपने इस विचार सेजानबूझकर बहिष्कृत कर दिया है, क्योंकि इन पर पहले ही 'गार्सा -द-तासी' ने पूर्ण रूप से विचार कर लिया है।- कालक्रमानुसार प्रस्तुत किया गया है।- ग्रंथ को कालखण्ड़ों में विभक्त किया गया है।- प्रत्येक काल के गौण कवियों का अध्याय विशेष के अंत में उल्लेख है।- विभिन्न युगों की काव्य प्रवृत्तियों की व्याख्या की गई है।- सोलहवी - सत्रहवी शती के युग ( भक्तिकाल ) को 'हिन्दी काव्य का स्वर्ण युग' माना है।- यह ग्रंथ मूलतः अंग्रेजी में है ।- ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद 1957 ई. में किशोरी लाल गुप्त ने 'हिन्दी साहित्य का प्रथम इतिहास' नाम से लिया । 3 / 20 जॉर्ज ग्रियर्सन ने अपने हिन्दी साहित्य के इतिहास के आधार ग्रन्थ के रूप में लगभग कितनी रचनाओं का संदर्भ दिया है ? आठ बारह सत्रह इक्कीस विशेष :-- ग्रियर्सन ने अपने ग्रन्थ के आधार स्रोत के रूप में तासी एवं शिवसिंह सेंगर के ग्रंथों के अतिरिक्त भक्तमाल, गोसाई -चरित, हजारा, काव्य संग्रह आदि सत्रह रचनाओं का उल्लेख किया है। 4 / 20 मिश्र बंधुओं द्वारा रचित 'मिश्र बंधु विनोद' के प्रथम तीन भाग 1913 ई. में प्रकाशित हुए। इसका चतुर्थ भाग कब प्रकाशित हुआ ? 1913 ई. 1921 ई. 1934 ई. 1947 ई. विशेष :-- मिश्र बंधुओं ने अपने ग्रंथ को 'इतिहास' की संज्ञा न देते हुए भी भरसक इस बात को यत्न किया कि यह एक आदर्श इतिहास सिद्ध हो।- लगभग पाँच हजार कवियों को स्थान ।- आठ से भी अधिक कालखण्डों में विभक्त है।- कवियों का सापेक्षित महत्त्व निर्धारित करने के लिए उनकी श्रेणियों भी बनायी गयी है ।- काव्य समीक्षा में परंपरागत सिद्धातों और पद्धति का ही अनुसरण मिलता है। 5 / 20 आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने हिन्दी साहित्य के इतिहास में कवियों के परिचयात्मक विवरण कहाँ से लिये है ? मिश्र बंधु विनोद इस्त्वार द ला लितरेत्युर ऐन्दुई ऐन्दुस्तानी द मॉडर्न वर्नेक्युलर लिटरेचर ऑफ हिन्दुस्तान उपर्युक्त सभी विशेष:-- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल लिखते हैं- " कवियों के परिचयात्मक विवरण मैंने प्राय: 'मिश्र बंधु विनोद से ही लिये हैं । "- आचार्य शुक्ल ने साहित्यिोतिहास को साहित्यलोचन से पृथक्रू प में ग्रहण करते हुए विकासवादी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का परिचय दिया है।- आचार्य शुक्ल ने कवियों और साहित्यकारों के जीवनचरित संबंधी इतिवृत्त के स्थान पर उनकी रचनाओं के साहित्यिक मूल्यांकन को प्रमुखता दी है।- आचार्य शुक्ल का इतिहास ही कदाचित अपने विषय का ऐसा पहला ग्रंथ है जिसमें अत्यंत सूक्ष्म एवं व्यापक दृष्टि विकसित दृष्टिकोण स्पष्ट विश्लेषण और प्रामाणिक निष्कर्षों का सन्निवेश मिलता है।- नगेन्द्र शुक्ल के बारे में लिखते हैं कि-'केशवदास' जैसे आचार्य कवि को 'अलंकारवादी' तथा परवर्ती रीतिकावियों को 'रसवादी' घोषित करते हुए उन्हें रीति परम्परा के प्रवर्तक केपद से वंचित करना भी संगत प्रतीत नहीं होता, क्योंकि जहाँ एक ओर केशव ने 'रसिक प्रिया' में रस सिद्धान्त का सांगोपांग निरुपण किया है-वहीं दूसरी ओर रीतिकावियों ने प्रायः अलंकारों पर भी ग्रंथ लिखे हैं। वास्तविकता यह है कि रीति-प्रतिपादन के क्षेत्र में इस काल के प्रायः सभी रीतिबद्ध कवियों ने न केवल केशवादास द्वारा प्रस्तुत विषयों का, अपितु उनकी प्रतिपादन शैली का भी पूरी तरह अनुसरण किया है। ऐसी स्थिति में तथाकथित 'रीतिकाल' (रीति परंपरा) का प्रवर्तन केशवदास से ही मानना ऐतिहासिक दृष्टि से ठीक होगा। 6 / 20 नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित ' हिन्दी शब्द सागर' की भूमिका के रूप में लिखा गया हिन्दी साहित्य का इतिहास हैं ? हिन्दी साहित्य का इतिहास- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी साहित्य का इतिहास- डॉ. नगेन्द्र हिन्दी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास - गणपति चन्द्र गुप्त हिन्दी साहित्य का दूसरा इतिहास- डॉ. बच्चन सिंह 7 / 20 आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने अपने हिन्दी साहित्य का इतिहास ग्रन्थ में लगभग कितने कवियों को स्थान दिया हैं ? 900 1000 1200 1500 8 / 20 "मैं इस्लाम के महत्त्व को भूल नहीं रहा हूँ, लेकिन जोर देकर कहना चाहता हूँ कि अगर इस्लाम न आया होता तो भी इस साहित्य का बारह आना वैसा ही होता, जैसा आज है । " उपर्युक्त कथन किस आलोचक का है ? आचार्य रामचन्द्र शुक्ल परशुराम चतुर्वेदी रामस्वरूप चतुर्वेदी हजारी प्रसाद द्विवेदी विशेष :-- जहाँ आचार्य शुक्ल की ऐतिहासिक दृष्टि युग की परिस्थितियों को प्रमुखता प्रदान करती है, वहीं आचार्य द्विवेदी ने 'परंपरा का महत्त्व' प्रतिष्ठित करते हुए उन धारणाओं को खण्डित किया, जो युगीन प्रभाग के एकांगी दृष्टिकोण पर आधारित थी ।- हजारी प्रसाद द्विवेदी पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने आचार्य शुक्ल की अनेक धारणाओं और स्थापनाओं को चुनौती देते हुए उन्हें सबल प्रमाणों के आधार पर खण्डित किया साथ ही उनके युग रुचिवादी एकांगी दृष्टिकोण के समानांतर अपने परंपरापरक दृष्टिकोण को स्थापित किया। 9 / 20 डॉ. नगेन्द्र द्वारा सम्पादित 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' कितने अध्याय में लिखा गया है ? 10 12 17 19 10 / 20 डॉ. रामकुमार वर्मा द्वारा रचित 'हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' 1938 ई. में किस कालावधि का वर्णन हैं ? 693 ई. से 1693 ई. 750 ई. से 1693 ई. 750 ई. से 1650 ई. 693 ई. से 1750 ई. विशेष :-- निर्गुण ज्ञानाश्रयी व निर्गुण प्रेममार्गी (सूफी) शाखा जैसे लम्बे नामों के स्थान पर क्रमशः 'संतकाव्य' व 'सूफी काव्य' नाम का प्रयोग किया। 11 / 20 डॉ. रामकुमार वर्मा द्वारा रचित 'हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास' कितने प्रकरणों में विभक्त है ? 5 7 9 8 विशेष :- अनेक कवियों के काव्य सौंदर्य का आख्यान करते समय लेखक की लेखनी काव्यमय हो उठी है, जो कि डॉ. वर्मा के कवि पक्ष का संकेत देती है। शैली की इसी सरसता और प्रवाहपूर्णता के कारण उनका इतिहास पर्याप्त लोकप्रिय हुआ है तथा पाठकों को इस बात का अभाव प्रायः खलता रहा है कि वह भक्तिकाल तक ही सीमित है, इसका शेष भाग अलिखित रहा। (संदर्भ- हिन्दी साहित्य का इतिहास डॉ. नगेन्द्र पृ०सं० 32) काल 693 ई. में - 1693 ई.सात प्रकरणप्रथम प्रकरण - संधिकालदूसरा प्रकरण - चारणकालतीसरा प्रकरण- भक्तिकाल की अनुक्रमाणिकाचौथा प्रकरण - भक्तिकालपाँचवा प्रकरण- प्रेमकाव्यछठा प्रकरण - रामकाव्यसातवाँ प्रकरण- कृष्ण काव्य 12 / 20 डॉ. रामकुमार वर्मा हिन्दी साहित्य का प्रथम कवि किसे माना है ? सरहपाद गोरखनाथ चंदबरदाई स्वयंभू 13 / 20 नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा 'हिन्दी साहित्य का बृहत् इतिहास' कितने भागों में प्रकाशित किया गया ? 12 16 18 21 विशेष:-नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा 1953 ई. में 18 खण्डों में प्रस्तावित कुल 16 खण्डों में प्रकाशित ग्रन्थ01 हिन्दी साहित्य की पीठिका 1969 ई. सं. राजबली पाण्डेय02 हिन्दी भाषा का विकास- 1965 ई. सं. धीरेन्द्र वर्मा, बाबूराम सक्सेना03 हिन्दी साहित्य का उदय और विकास - 1983 ई. सं. भोलाशंकर व्यास, करुणापति त्रिपाठी04 भक्तिकाल (निर्गुण) - 1968 ई. सं. परशुराम चतुर्वेदी05 भक्तिकाल (सगुण ) - 1972 ई. सं. दीनदयाल गुप्त देवेन्द्रनाथ शर्मा, विजयेन्द स्नातक06 रीतिकाल (रीतिबद्ध ) - 1958 ई. सं. नगेन्द्र07 रीतिकाल (रीतिमुक्त ) - 1972 ई. सं. भगीरथ मिश्र08 हिन्दी साहित्य का आभ्युत्थान- 1972 ई. सं. विनय मोहन शर्मा, (भारतेन्दु युग)09 हिन्दी साहित्य का परिष्कार - 1977 ई. सं. सुधाकर पाण्डेय ( द्विवेदी युग )10 हिन्दी साहित्य का उत्कर्ष ( काव्य )1971 ई. सं. नगेन्द्र, शिवप्रसाद मिश्र 'रुद्र', रामेश्वर शुक्ल 'अंचल'11 हिन्दी साहित्य का उत्कर्ष (नाटक) - 1972 ई. सं. सवित्री सिन्हा दशरथ ओझा, लक्ष्मीनारायण लाल12 हिन्दी साहित्य का उत्कर्ष ( कथा ) - 1984 ई. सं. कल्याण मल लोढ़ा, अमृतलाल नागर13 हिन्दी साहित्य का उत्कर्ष (समालोचना, निबंध, पत्रकारिता ) - 1965 ई. स. लक्ष्मी नारायण सुधांशु14 हिन्दी साहित्य का अद्यतनकाल- 1970 ई. स. हरबंशलाल शर्मा, कैलाश चन्द भाटिया15 आंतर भारतीय हिन्दी साहित्य - 1979 ई. नगेन्द्र16 हिन्दी का लोक साहित्य- सं. राहुल सांस्कृत्यायन कृष्णदेव उपाध्याय 14 / 20 डॉ. धीरेन्द्र वर्मा द्वारा सम्पादित ग्रन्थ ' हिन्दी साहित्य' में साहित्य के इतिहास को कितने कालखण्डों में विभाजित किया गया है ? 4 3 5 7 विशेष :- आदिकाल, मध्यकाल, आधुनिक काल । 15 / 20 'हिन्दी काव्यशास्त्र का इतिहास' के रचनाकार है ? आचार्य परशुराम चतुर्वेदी डॉ. भगीरथ मिश्र डॉ. नगेन्द्र विश्वनाथप्रसाद मिश्र 16 / 20 रचना और रचनाकार का असंगत क्रम छाँटिए - रीतिकाव्य की भूमिका - डॉ. नगेन्द्र उत्तरी भारत की संत परम्परा परशुराम चतुर्वेदी हिन्दी साहित्य का अतीत- विश्वनाथ प्रसाद मिश्र साहित्य का इतिहास दर्शन - विजयेन्द्र स्नातक 17 / 20 'पंजाब प्रांतीय हिन्दी साहित्य का इतिहास' के रचनाकार है ? डॉ. टीकम सिंह तोमर श्री चंन्द्रकान्त बाली काशीनाथ खत्री श्रद्धाराम फुल्लौरी 18 / 20 'मध्यकालीन खण्ड काव्य' के रचनाकार है ? डॉ. महेन्द्र कुमार डॉ. गोपाल राय डॉ. हरदयाल डॉ. सियाराम तिवारी 19 / 20 'राजस्थानी भाषा और साहित्य' व 'राजस्थानी पिंगल साहित्य' किसकी रचना है ? डॉ. टीकम सिंह तोमर डॉ. केसरीनारायण शुक्ल डॉ. मोतीलाल मेनारिया डॉ. श्री कृष्णलाल 20 / 20 रचनाकार व रचना का असंगत क्रम छाँटिए- प्रभुदयाल मित्तल- चैतन्य सम्प्रदाय और उसका साहित्य डॉ. विजयेन्द्र स्नातक- राधावल्लभ सम्प्रदायः सिद्धान्त और साहित्य डॉ. टीकम सिंह तोमर - हिन्दी वीर काव्य डॉ. रामखिलावन पाण्डेय - साहित्य और इतिहास दृष्टि Your score isThe average score is 66% 0% Restart quiz Bhawna View All Posts Post navigation Previous Post डॉ. नगेन्द्र प्रश्नोत्तरी SET-02 (NET,SET,TGT,PGT,Hindi) SpecialNext Postडॉ. नगेन्द्र प्रश्नोत्तरी SET-03 (NET,SET,TGT,PGT,Hindi) Special